Thursday, September 9, 2010

चांद से फूल से या मेरी जुबां से सुनिए...

कुछ खास लोगों को यह तकलीफ हमेशा ही रही कि वे कलक्टर जैसे पद पर रहते हुए आम आदमी के करीब रहे। यह तकलीफ निस्संदेह एक बेहतर और सकारात्मक तस्वीर सामने लाती है। आम आदमी की दुश्वारियों और पीड़ाओं के लिए इनके भीतर का एक संवेदनशील मनुष्य हमेशा जागता रहा। ...और इसी जागते हुए आदमी ने इनके कलक्टर को वह सब करने में लगाए रखा, जिससे कहीं कहीं उस आम आदमी को राहत मिले। दो जून की रोटी के लिए संघर्ष करते उस आम आदमी को उसके हक मिलें, यह सोच-यह विजन डॉ कृष्णाकांत पाठक के कामकाज में हमेशा नजर आता रहा।

महानरेगा जैसी महत्वपूर्ण और महत्वाकांक्षी योजना में डॉ पाठक ने अपने नवाचारों के चलते चूरू को देशभर में अहम मुकाम दिलाया है। योजना जितनी बड़ी और अहम है, भ्रष्टाचार अनियमितताओं की गुंजाईशें भी उतनी ही अधिक हैं। जब तक ये गुंजाईशें खत्म नहीं होती, तब तक आम आदमी को इसका पूरा लाभ मिलना संभव ही नहीं। यही वजह थी कि योजना में गड़बड़ी के सारे सुराख बंद करने की ओर डॉ पाठक ने लगातार ध्यान बनाए रखा और इसी प्रगतिशील सोच का ही परिणाम था कि चूरू ई-मस्टररोल जारी करने वाला राजस्थान का प्रथम जिला बना। यह इस योजना में अनियमितताओं पर अंकुश की दिशा में एक बड़ी पहल थी, जिसमें निश्चित रूप से स्वयं डॉ पाठक ने व्यक्तिगत रूप से रूचि ली और यह एक कारगर कदम हुआ।

भुगतान में विलंब महानरेगा की एक बड़ी समस्या थी। महीनों तक मजदूरों को उनकी मजदूरी नहीं मिल रही थी। यह एक देशव्यापी समस्या थी। निम्न स्तर पर जीवन यापन करने वाले मजदूरों को अपनी मजदूरी के लिए महीनों इंतजार करना पड़े, यह डॉ पाठक को गवारा हुआ। नरेगा अधिनियम भी यही कहता है कि 15 दिनों में लोगों को उनकी मजदूरी मिले। ऎसे में डॉ पाठक ने एक नवीन कार्ययोजना बनाई, जिसमें पखवाड़ा समाप्त होने के बाद एक सप्ताह में सारी औपचारिकताएं, सारी प्रक्रियाएं पूरी हों और ज्यादा से ज्यादा 15 दिनों में मजदूरों को उनकी मजदूरी मिल जाए। यह तमाम कसरत काम आई और आज (कुछ अपवादों को छोड़कर) हम दावा कर सकते हैं कि चूरू 15 दिनों में महानरेगा श्रमिकों को उनकी मजदूरी का भुगतान कर रहा है। ऎसा करने वाले हम देश में प्रथम हैं।

महानरेगा चूंकि ग्राम पंचायत स्तर की योजना है और रोजगार देने में कहीं कहीं सरपंच, ग्रामसेवक और रोजगार सहायक की भूमिका रहती है। स्थानीय स्तर पर इनकी अपनी रूचियां भी योजना को प्रभावित करती ही हैं। इस तंत्र की नकारात्मक भूमिका के चलते कुछ लोग जरूरतमंद होने के बावजूद योजना से नहीं जुड़ पा रहे थे। डॉ पाठक ने इसे समझा और एक अभियान चलाकर प्रत्येक जॉब कार्ड धारी से नरेगा में रोजगार के लिए आवेदन भराने का काम कराया। आवेदन नंबर छह का एक नया फॉरमेट बना। वर्ष भर में किन पखवाड़ों में काम चाहिए, यह ग्रामीणों को नए प्रपत्र में अंकित करना था। अभियान के दौरान नए जॉब कार्ड भी बनाए गए और सत्यापन भी किया गया। नतीजा यह हुआ कि बड़ी संख्या में नए जॉब कार्ड बने और लोगों ने आवेदन भरे। अब उन्हीं आवेदनों के आधार पर मस्टररोल जारी किए जा रहे हैं।

15 अगस्त 2010 से चूरू में लागू किया गया ‘पब्लिक ग्रिवांस रिड्रेसल सिस्टम’ भी कहीं कहीं डॉ पाठक के भीतर की संवेदनशीलता की ही प्रतिक्रिया है। डॉ पाठक देखते हैं कि अनगिनत अनियमितताओं के बावजूद मुश्किल से तो कोई शिकायत करने की हिम्मत ( या हिमाकत ?) करता है और वही शिकायत जब फाइलों में दम तोड़ देती है तो शिकायत करने वाले के गाल पर यह दूसरा तमाचा होता है। किसी व्यक्ति की शिकायत पर क्या कार्यवाही हो रही है और वह किस स्तर पर चल रही है, देखने के लिए जिले में पब्लिक ग्रिवांस रिड्रेसल सिस्टम ‘लोकवाणी’ लागू करने की पहल की गई है। निसंदेह आने वाला समय ‘लोकवाणी’ के चमत्कार दिखाएगा। आज तमाम पदों पर कुंडली मारे बैठे लोग सूचनाओं को छिपाने के सारे षडयंत्र करने में जुटे हैं तो निश्चित रूप से ‘लोकवाणी’ कहीं कहीं पारदर्शिता, जवाबदेही और संवेदनशीलता के लिहाज से मिसाल है।
लोगों को तकनीक से जोड़ने और उसका फायदा दिलाने में हमेशा पाठक साहब की रूचि रही। डॉ पाठक ने जब देखा कि सारे राज्य में एक साथ शुरू किए गए जिला कम्प्यूटर प्रशिक्षण केंद्र (डीसीटीसी) ‘सफेद हाथी’ बनते जा रहे हैं तो उन्होंने डीसीटीसी का स्वरूप बदलने के लिए कमर ही कस ली। डॉ पाठक की व्यक्तिगत रूचि का ही नतीजा है कि आज चूरू डीसीटीसी अपनी उपलब्धियों के लिए पूरे प्रदेश में मॉडल है और यहां दिए गए प्रशिक्षणों के बाद दूसरे जिलों में स्थित केंद्रों की दशा भी सुधरने चली है।

अकाल के साये में अक्सर रहने वाले चूरू में जब पिछले दिनों इंद्रदेव मेहरबान हुए और बाढ़ के चलते लोगों को मुश्किलें झेलनी पड़ीं, तब पाठक साहब की संवेदनशीलता देखते ही बनी। उनके द्वारा दी गई तात्कालिक आर्थिक मदद तो अपनी जगह है लेकिन उनका लगातार बाढ़ पीड़ितों के बीच मौजूद रहकर काम करना प्रभावित करने वाला था। उन्होंने एक स्वयंसेवक की तरह निरंतर काम करते हुए पाठक साहब ने लोगों को यह यकीन दिला दिया कि कोई है जो उनकी तकलीफों को बराबर शिद्दत से महसूस करता है और इन तकलीफों को कम करने के लिए बातों में नहीं, काम में यकीन रखता है। गुजरात में आपदा राहत के लिए कमिश्नर एसआर राव को याद किया जाता है। सूरत में 2006 की बाढ के बाद कुछ ही दिनों में उन्होंने इस त्रासदी के नामोनिशां तक मिटा दिए थे। बाढ के बीस दिन बाद ही सूरत की सड़कों पर घूमते हुए मेरे लिए यह कहना मुश्किल था कि यह शहर इतनी बड़ी विभीषिका को हाल ही में झेल चुका है। बाढ की स्थिति और संसाधनों में अंतर अलग मुद्दा है। संवेदनशीलता और सक्रियता के लिहाज से डॉ पाठक कहीं भी श्री एसआर राव से कम नहीं ठहरते।

ऎसी ही अनेक उपलब्धियों से डॉ कृष्णाकांत पाठक का दामन भरा पड़ा है लेकिन पाठक साहब की सर्वाधिक चर्चा और सराहना जिस बात के लिए होती है, वह है इनकी संवेदनशीलता, सरलता और सुमधुर व्यवहार। जो भी इनसे मिला, वो इन्ही का हो लिया। जीवन में और खासकर इतने महत्वपूर्ण पद पर तनाव के अनेक क्षण जाते हैं, हालात कई बार विपरीत हो जाते हैं लेकिन शायद ही किसी ने पाठक साहब को असहज देखा हो। मनुष्य के लिए एक दुर्लभ सी स्थितप्रज्ञता इनके भीतर देखने को मिली। पाठक साहब से मुलाकात से पहले मैं निजी रूप से एक व्यक्ति को इसके लिए याद करता था। दैनिक भास्कर सीकर में मेरे एक सीनियर थे श्री अनिल कर्मा। मैंने कभी उन्हें गुस्सा होते हुए नहीं देखा। कठोरतम बातें भी वे बड़ी सहजता से कहा करते थे और कम से कम मैं तो उनके मृदु व्यवहार से खासा प्रभावित था। ठीक वैसी ही सहजता पाठक साहब में मुझे देखने को मिली। कैसी भी परिस्थिति हो और सामने कोई भी व्यक्ति हो, डॉ पाठक के भीतर का ‘मनुष्य’ इनके ‘कलक्टर’ पर हमेशा भारी रहा।

डॉ पाठक को उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए ढेरों शुभकामनाएं...

मानवता के लिए काम करने का उनका यह जज्बा बरकरार रहे, ईश्वर से यही प्रार्थनाएं...

Monday, August 30, 2010

दो दिन लगातार मिली ‘खुराक’

चूरू शहर के पिछले दो दिन बेहद साहित्यिक गुजरे। देशभर में अपनी अनूठी पहचान रखने वाले नगरश्री सभागार में शनिवार और रविवार दोनों ही शामें साहित्यिक रूचि रखने वाले लो के लिए खुराक लेकर आईं। साहित्य जगत की विभिन्न नामवर हस्तियां शहर से मुखातिब हुईं। सौभाग्य से मुझे दोनों कार्यक्रमों में शामिल होने का मौका मिला।

शनिवार को प्रयास संस्थान चूरू की ओर से दिया जाने वाला डॉ घासीराम वर्मा पुरस्कार जयपुर के प्रसिद्ध कवि हेमंत शेष को देश के शीर्ष कथाकारों में शुमार नासिरा शर्मा के हाथों मिला। वर्ष 2010 का यह पुरस्कार उन्हें उनकी कृति ‘जगह जैसी जगह ’ के लिए प्रदान किया गया।

सम्मानित कवि हेमंत शेष ने इस मौके पर कहा, ‘‘साहित्य और संस्कूति के क्षेत्र में जो कार्य हो रहा है, वह निश्चित रूप से किसी युद्ध, हिंसा, घृणा और राजनीति से महत्वपूर्ण कार्य है। शब्द समूचे संसार का आधार है और वह समाज को नई शक्ति देता है। साहित्य इसलिए निर्विकल्प है क्योंकि हमारे लिए भाषा का कोई विकल्प नही और हमारी जिज्ञासाओं, चिंताओं, आशाओं, आशंकाओं और संभावनाओं का भी कोई विकल्प नहीं हैं। ये तमाम चीजें हमारे मनुष्य होने के अहसास को और गहरा करती हैं। साहित्य की एक लंबी परंपरा मौजूद होने के कारण आधुनिक साहित्यकार होना एक बड़ी चुनौती है क्योंकि जो लिखा गया है उससे अलग होना और एकदम नया कर पाना मुश्किल है। जब तक संसार में अच्छी चीजों की संभावनाएं हैं, तब तक साहित्य की प्रासंगिकता बनी रहेगी। ’’

समारोह के प्रधान वक्ता साहित्यकार गिरिराज किराड़ू इस मौके पर हेमंत शेष की पुरस्कृत पुस्तक पर टिप्पणी करते हुए बोले, ‘‘ एक दुनिया है जो हमारे बीच से गायब हो रही है। हेमंत शेष की कविता ऎसी चीजों की लंबी सूची बनाती है जो हमारे बीच से गायब होकर था, थे, थी बनती जा रही हैं। हेमंत की कविता इस दुष्प्रचार का खंडन करती है कि आधुनिक कविता संवेदना और जीवन से कहीं दूर भटक रही है। ’’

विशिष्ट अतिथि प्रसिद्ध आलोचक डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल ने कार्यक्रम की सराहना करते हुए कहा, ‘‘आयोजन की सफलता इस चिंता का खंडन करती है कि साहित्य की प्रासंगिकता खत्म हो गई है। आजादी के बाद एक बड़ी दुर्घटना हमारे साथ यह घटी कि हम प्रत्येक कार्य के लिए सरकार के मुखापेक्षी हो गए हैं लेकिन डॉ घासीराम वर्मा जैसे लोग इस बात को झुठलाते हैं। ’’

बीकानेर के साहित्यकार मालचंद तिवाड़ी ने हेमंत शेष की कविता की असली ताकत उनकी भाषा को बताया। वे बोले, ‘‘हेमंत विषयों, प्रतीति और अनुभूति के हिसाब से वे उच्च स्तर के कवि हैं। ’’ उन्होंने अज्ञेय केा उद्धृत करते हुए कहा, ‘‘किसी भी अच्छी रचना को पढने के बाद आप वही नहीं रह जाते जो आप उस रचना को पढने से पहले थे। ’’

करोड़पति फकीर की संज्ञा से विभूषित प्रसिद्ध शिक्षाविद डॉ घासीराम वर्मा ने साहित्य और पुस्तकों को समाज की महत्ती जरूरत बताया। उन्होंने कहा, ‘‘हमारे विद्यालयो के पुस्तकालयों में बंद किताबें विद्यार्थियों तक पहुंचे, ऎसे प्रयास शिक्षकों को करने चाहिए।’’

समारोह में भंवर सिंह सामौर, सुरेंद्र पारीक रोहित, दुलाराम सहारण, रामनाथ कस्वां, उम्मेद गोठवाल, हरिसिंह सिरसला, हनुमान कोठारी, सोहनसिंह दुलार, शेरिंसह बीदावत, बाल भवन जयपुर की निदेशक श्रीमती चरणजीत ढिल्लो, नगरश्री के श्याम सुंदर शर्मा, रामगोपाल बहड़, पूर्व विधायक रावतराम आर्य, पत्रकार माधव शर्मा, मदन लाल सिंगोदिया, शोभाराम बणीरोत, कमल शर्मा प्रदीप शर्मा, शिव कुमार शर्मा, संतोष कुमार पंछी सहित बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमी श्रोता उपस्थित थे।


डॉ घोटड़ की पुस्तक का विमोचन


समारोह के दौरान साहित्यकार डॉ रामकुमार घोटड़ की पुस्तक मेरी श्रेष्ठ लघुकथाएं का विमोचन मुख्य अतिथि नासिरा शर्मा ने किया। इस पुस्तक में डॉ घोटड़ के 25 वर्ष के साहित्यिक जीवन के दौरान लिखी गई लघुकथाओं में से स्वयं उनके नजरिए से बेहतरीन 58 लघुकथाएं संकलित की गई हैं। पुस्तक के प्रथम खंड में विभिन्न संग्रहों व पत्रिकाओं में प्रकाशित 25 तथा दूसरे खंड में 33 नवीन लघुकथाएं शामिल की गई हैं। समारोह में प्रयास संस्थान की समारोह केंद्रित स्मारिका का विमोचन अतिथियों ने किया।


बोधि पुस्तक पर्व एवं मायामृग

समारोह में बोधि पुस्तक पर्व प्रकाशन के लिए बोधि प्रकाशन जयपुर के मायामृग को सम्मानित किया गया। वक्ताओं ने उनकी इस पहल को पुस्तक जगत की नैनो क्रांति की संज्ञा देते हुए उनकी खुले दिल से सराहना की। सम्मानित प्रकाशक मायामृग ने कहा, ‘‘साहित्य प्रकाशन के क्षेत्र में जिस तरह विसंगतियां और विद्रूपताएं पैदा हो गई है, वैसे में थोड़ी जोर से आवाज जरूरी थी। पाठकों को वाजिब मूल्य पर किताब मिलनी ही चाहिए। हिंदी में असंख्य पाठक मौजूद है। कहीं न कहीं कमी हमारी है कि हम उन तक नहीं पहुंच पा रहे हैं।


प्रयास की ओर से पुस्तकें भेंट -

सम्मानित कवि हेमंत शेष ने पुरस्कार राशि पांच हजार एक सौ रुपए की राशि प्रयास संस्थान को साहित्यिक कार्य के लिए प्रदान की। प्रयास संस्थान की ओर से इतनी ही राशि और मिलाकर जिले के 51 पुस्तकालयों को पुस्तकों के सैट भेंट करने का निर्णय लिया गया। समारोह के दौरान प्रतीक स्वरूप विभिन्न पुस्तकालयों व विद्यालयों के प्रतिनिधियों को पुस्तकें भेंट की गईं।



रूबरू हुए बीकानेर के साहित्यकार मालचंद तिवाड़ी


रविवार को पंडित कुंज बिहारी शर्मा स्मृति गोष्ठीमाला की 40 वीं कड़ी में बीकानेर के श्री मालचंद तिवाड़ी शहर के साहित्यप्रेमियों से रूबरू हुए।

राजस्थानी व हिंदी के वरिष्ठ कवि और कथाकार मालचंद तिवाड़ी ने अपनी रचनाओं से सुधी साहित्यप्रेमियों व श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया।

वरिष्ठ कवि श्री प्रदीप शर्मा की गोष्ठी की शुरुआत में श्री मालचंद तिवाड़ी ने अपने साहित्यिक जीवन और दृष्टिकोण को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले शरतचंद्र के उपन्यास चरित्रहीन और उसकी मुख्य पात्र किरणमयी पर केंद्रित अपने चिंतनपरक आलेख से की। मानवीय संवेदनाओं और सामाजिक विद्रूपताओं का चित्रण करती लघुकथाएं खबर और रूमाल साहित्यप्रेमियों ने खासी पसंद की। काव्यपाठ की शुरुआत तिवाड़ी ने अपनी राजस्थानी कविता सवार से की तो उनके अनुभूति और अभिव्यक्ति के स्तर को देखकर साहित्यप्रेमी चकित रह गए। मां की ममता और स्नेहिल स्पर्श की खुशबू से लबरेज मां रै सिराणै शृंखला की पांच कविताओं को सुनकर श्रोताओं की आंखें नम हुए बिना नहीं रह सकीं। कूं-कूं रा छांटा और अणसुणी बाळसाद जैसी कविताओं ने भी भाव-विभोर कर दिया। विश्वविख्यात पंजाबी कवि सुरजीत पातर की मालचंद तिवाड़ी द्वारा अनुदित कविताओं साज कैवे तलवार नैं और इतिहास ने सुधी श्रोताओं के हृदय को भीतर तक झकझोर दिया।


इस मौके पर अपने आत्मकथ्य में साहित्यकार मालचंद तिवाड़ी ने कहा, ‘‘ अभ्यास और साहित्यिक सत्संग से लेखन में निखार अवश्य आता है लेकिन वे प्रतिभा के स्थानापन्न नहीं हो सकते। लेखक होना एक तरह की आत्मविष्कृति है और मनुष्य की एक निर्विकल्प परिस्थिति है। स्थिति कुछ-कुछ ऎसी है कि मैं तो कंबल को छोड़ दूं पर यह कंबल मुझे नहीं छोड़ता। साहित्य क्षेत्र की उठापटक और राजनीति से कई बार वितृष्णा होती है लेकिन विवशता यह है कि मैं इसे छोड़ नहीं पाता। ’’

गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि प्रदीप शर्मा ने कहा, ‘‘ जब हृद्य भरा होता है तो शब्द कम होते हैं और तिवाड़ी की रचनाएं हृद्य को छूने वाली हैं। विभिन्न घटनाओं, संबंधों और चीजों के प्रति उनकी अंतर्दृष्टि और सूक्ष्म विवेचन क्षमता प्रभावित करती है।’’

साहित्यकार दुलाराम सहारण ने कहा कि तिवाड़ी की कहानियां और कविताएं प्रत्येक आम और खास के भीतर तक पहुंचते हुए अपना असर छोड़ती हैं।

मोहन सिंह मानव, सुरेंद्र पारीक रोहित, कमल शर्मा, रामसिंह बीका ने भी तिवाड़ी की कविताओं पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि वे मानवीय संवेदना के कवि हैं।

इस मौके पर शॉल ओढाकर मालचंद तिवाड़ी का सम्मान किया गया। कार्यक्रम में रामसिंह बीका, देवकिशन सैनी, रामनिवास सर्राफ, डॉ शेरसिंह बीदावत, रामनाथ कस्वां, रामावतार साथी, दुलाराम सहारण, कमल शर्मा सहित बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमी मौजूद थे।


संबंधों की ऊष्मा के चितेरे श्री मालचंद जी तिवाड़ी-

मानवीय संवेदनाओं और संबंधों की ऊष्मा का अपनी रचनाओं में प्रभावी चित्रण करने वाले मालचंद तिवाड़ी का जन्म 19 मार्च 1958 को बीकानेर में हुआ। इनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें हिंदी कहानी संग्रह पानीदार तथा अन्य कहानियां, ‘सुकांत के सपनों में, ‘जालिया और झरोखे, ‘त्राण तथा अन्य कहानियां, उपन्यास पर्यायवाची, एच जी वेल्स की महान विज्ञान कथा टाइम मशीन हिंदी अनुवाद, राजस्थानी में उपन्यास भोळावण, कविता संग्रह उर्तयो है आभो, कहानी संग्रह सेलिब्रेशन मुख्य हैं। इन्हें राष्ट्रीय स्तर का साहित्य अकादेमी पुरस्कार, राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादेमी का सर्वोच्च सूर्यमल्ल मिश्रण पुरस्कार, लखोटिया पुरस्कार, गणेशीलाल व्यास पुरस्कार सहित विभिन्न पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। पांच साल तक केंद्रीय अकादेमी की राजस्थानी परामर्श समिति में संयोजक रह चुके तिवाड़ी वर्तमान में अकादेमी की राइटर एट रेजीडेंस योजना के अंतर्गत लेखन कार्य कर रहे हैं।

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Tuesday, August 3, 2010

कामयाबी का लम्हा


परसों सवेरे सवेरे पांच बजे उठते ही दैनिक भास्कर देख रहा था। अचानक रिजल्ट जैसी कोई चीज दिखी। देखा तो राजस्थानी एम.ए. फाइनल का रिजल्ट छपा था। मुझे अपने रोल नंबर याद न थे। मैंने देखा, प्रथम श्रेणी में र्सिफ चार लोगों के रोल नंबर छपे थे। मैंने रोल नंबर याद करने के लिए स्मृति पर जोर दिया तो लगा कि उनमें से एक रोल नंबर मेरा था। खुशी हुई ये सोचकर। घर में किताबों-कागजों में परीक्षा एडमिशन र्काड ढूंढकर कन्र्फम किया। फिर दुलाराम जी को फोन किया इंटरनेट पर रिजल्ट देखने के लिए। उन्होंने बताया कि नेट पर रिजल्ट नहीं था। फिर बैटरी रिर्चाज नहीं होने के कारण मोबाइल काम नहीं कर रहा था तथा दूरसंचार विभाग की मेहरबानी के चलते बेसिक फोन खराब था। फिर महावीर जी नेहरा आ घर आ गए। उनसे बातचीत के दौरान कोई नंबर देखने के लिए मोबाइल ऑन करने की कोशिश की तो कादंबिनी क्लब के राजेंद्र र्शमा जी का फोन आ गया। उन्होंने मेरे यूनिर्वसिटी टॉपर होने की सूचना दी। मेरी खुशी का ठिकाना न था। तभी मोबाइल पर दुलाराम जी के लगातार मैसेज आने शुरू हो गए, गोल्ड मेडल की सूचना और बधाई के। दुलाराम जी ने सब परिचितों को एसएमएस कर दिए थे। सो सबके मैसेज व फोन आने शुरू हो गए। बैटरी नहीं होने के कारण मोबाइल बंद हो रहा था। वापस ऑन करने पर एक दो मैसेज मिलते और मोबाइल फिर बंद हो जाता। नगर श्री चूरू के श्री श्याम सुंदर र्शमा, श्री रामगोपाल जी बहड़, श्री बाबू लाल जी र्शमा, श्री बैजनाथ जी पंवार, श्री मानसिंह जी सामौर, श्री माधव शर्मा, श्री नरेंद्र शर्मा, श्री विश्वनाथ भाटी तारानगर, श्री कुंज बिहारी जी पत्रकार, श्री भरत जी ओला, श्री किशन जी उपाध्याय, श्री विश्वनाथ जी सैनी पत्रकार, श्री किशोर र्निवाण, श्री संतोष गुप्ता जी पत्रकार, श्री आशीष गौतम पत्रकार, श्री गौरव र्शमा र्पवतारोही, नारायण जी मेघवाल, श्री रवि पुरोहित, श्री राधाकिशन सोनी डूंगरगढ, श्री हिमांशु दाधीच बीकानेर, श्री हिमांशु र्वमा जयपुर, श्री राकेश टेलर जयपुर, श्री मोहनलाल र्शमा पत्रकार बीकानेर, श्री अरविंद चोटिया जोधपुर, र्धमपाल र्शमा, अखिलेश, राजकुमार चोटिया सुजानगढ, अमित प्रजापत सुजानगढ, नरेंद्र सिंह ईटीवी, अमित तिवारी चूरू, नवीन उपाध्याय, सुरेंद्र सैनी प्रेस फोटोग्राफर सीकर, र्सवेश र्शमा सीकर, सुरेंद्र चौधरी सीकर, सारिका, अजीत राठौड़ जयपुर, डॉ कादिर हुसैन, डॉ जगदीश सिंह भाटी, श्री प्रदीप पूनिया, श्री भंवर लाल रूइल, श्री सुगन सिंह राठौड़, श्री महबूब सीधर, श्री संदीप जोशी, शैलेंद्र सोनी प्रेस फोटोग्राफर सहित बड़ी संख्या में शुभचिंतकों, दोस्तों और संंबंधियों ने फोन व मैसेज कर तथा मिलकर बधाई व शुभकामनाएं दीं। सभी शुभचिंतकों को इस दुलार व स्नेह के लिए धन्यवाद।

कामयाबी का यह लम्हा पूरी तरह माता-पिता और अग्रज समान श्री दुलाराम सहारण को सर्मपित करते हुए मुझे उन पर र्गव है। श्री दुलाराम जी ने ही राजस्थानी में एम.ए. के लिए प्रोत्साहित किया। राजस्थानी में पाठ्य सामग्री भी मुश्किल से मिल पाती है लेकिन उनके होते मुझे ऎसी कोई समस्या नहीं रही। वे समय-समय पर मुझे लगातार प्रेरित करते रहे। इसके बावजूद मुझे इस सफलता की इतनी उम्मीद न थी, पर वे लगातार विश्वास जताते थे कि स्र्वण पदक कुमार अजय, राजेंद्र र्शमा या रवि पुरोहित में से किसी एक को ही मिलेगा। उनकी इस पे्ररणा, स्नेह, आर्शीवाद, सहयोग और विश्वास को प्रणाम...।

आज लगभग सभी अखबारों में यह खबर लगी है। सभी सम्मानित पत्रकारों और संपादकों को इस स्नेह के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।