Monday, December 19, 2016



जो होगा देखा जाएगा...
मुझसे चुप न रहा जाएगा
जो होगा, देखा जाएगा।
आज रात भर पी लेने दो
बाकी कल सोचा जाएगा।
दुनिया के झगड़े सब झूठे
साथ हमारे क्या जाएगा।
इक पत्थर को दिल दे बैठे
काफिर हमें कहा जाएगा।
तेरे जुल्म का दिल रखेंगे
हंसकर जख्म सहा जाएगा।

Friday, December 16, 2016

चुनौती

तुम्हारी आंखें चमक रही थीं
होठों पर तैर रही थी मुस्कराहट
तुम्हारी देह में एक तेवर था
और गर्मजोशी से भरा था
एक-एक शब्द.
इतने भरोसेमंद स्वर में
तुमने कहा था
आने वाले हैं अच्छे दिन
कि शादी का झांसा देकर
रोज हो रहे बलात्कार,
आभूषण चमकाने के नाम पर
हो रही सोने की ठगी,
एक महीने में रकम
दुगुनी करने के वायदों
और असाध्य बीमारियों के
गारंटेड इलाज के दावों की
खबरों और विज्ञापनों
के बीच
हजारों साल से
ठगे जा रहे मुझ अबोध के पास
नहीं था कोई कारण
यकीन नहीं करने का.
तभी तो
तुमने जब दिया मेरी उम्मीदों को
अपना लच्छेदार स्वर,
भीड़ में बैठा मैं भी
दोहरा रहा था
अच्छे दिनों को लेकर
अपनी दबी हुई ख्वाहिशें
तुम्हारी मुस्कराहटों में छिपे छल
तुम्हारी आंखों में दबी धूर्तता
तुम्हारे आश्वासनों में छिपे जुमलों
तुम्हारी गर्मजोशियों में छिपी मंशाओं
और तुम्हारे तेवर में लिपटे
खंजरों से बेखबर.

तो भी सुनो!
सर्वकालिक तौर पर
सबसे अधिक
छला गया समय मैं
तुम्हें कह रहा हूं
तुम जैसे हजारों जुमलेबाज
मिलकर भी
नहीं नष्ट कर सकते
अच्छे दिनों की मेरी आशाओं को
सुनो, उस बार तुमने कहा था
इस बार मैं कह रहा हूं
अच्छे दिन आने वाले हैं
रोक लेना तुम,
रोक सको यदि।

-कुमार अजय
(5 अक्टूबर 2016)

Thursday, December 15, 2016

एक लब्ज न बोलूंगा...
तेरे पहलू में बैठकर जी भर के रो लूंगा
नाराजगी भी निभाऊंगा, एक लब्ज न बोलूंगा।
तुम्हारी मुहब्बत में दर्द के दरिया से कभी
निजात हो भी गई तो फिर से दिल डुबो लूंगा।
तुझे मुझसे डर है, मुझे तुम्हारी फिकर है
आखिर मैं क्यूं जहर तेरी जिंदगी में घोलूंगा।
इस घने जंगल में आदमी से डरता हूं मैं
कोई जानवर मिले तो तय है साथ हो लूंगा।
मेरी जेब में हादसों के हसीन मोती भरे हैं
वक्त मिला तो आंसू के धागे में पिरो लूंगा।
बाहर दम घुटे है, एक कब्र बख्श दे मौला
तेरे बंदों से नजर बचाके चैन से तो सो लूंगा।

Wednesday, December 14, 2016

इतना भी खामोश ना रह...

इतना भी खामोश ना रह
उसकी सुन, अपनी भी कह।

कभी-कभी धारा को मोड़
और कभी धारा में बह।

दुनिया के ताने सुनता है
उसकी भी दो बातें सह।

उसकी हस्ती क्या जानूं
तह के नीचे कितनी तह।

अहम के सूरज को थाम
वरना तुम्हें रोकेगा वह।

—कुमार अजय

Wednesday, August 24, 2016

सांस्कृतिक क्लब कार्यशाला, रमसा कार्यालय, सीकर
24 अगस्त, 2016
युवा पुरस्कार 2013, साहित्य अकादेमी,
जोधपुर, पांच फरवरी 2014
जिला प्रशासन, सीकर की ओर से प्रशस्ति पत्र, स्वाधीनता दिवस 2016
स्वर्ण पदक, राजस्थानी एमए, महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय, बीकानेर, वर्ष 2010