चूरू शहर के पिछले दो दिन बेहद साहित्यिक गुजरे। देशभर में अपनी अनूठी पहचान रखने वाले ‘नगरश्री’ सभागार में शनिवार और रविवार दोनों ही शामें साहित्यिक रूचि रखने वाले लो के लिए ‘खुराक’ लेकर आईं। साहित्य जगत की विभिन्न नामवर हस्तियां शहर से मुखातिब हुईं। सौभाग्य से मुझे दोनों कार्यक्रमों में शामिल होने का मौका मिला।
शनिवार को प्रयास संस्थान चूरू की ओर से दिया जाने वाला डॉ घासीराम वर्मा पुरस्कार जयपुर के प्रसिद्ध कवि हेमंत शेष को देश के शीर्ष कथाकारों में शुमार नासिरा शर्मा के हाथों मिला। वर्ष 2010 का यह पुरस्कार उन्हें उनकी कृति ‘जगह जैसी जगह ’ के लिए प्रदान किया गया।
सम्मानित कवि हेमंत शेष ने इस मौके पर कहा, ‘‘साहित्य और संस्कूति के क्षेत्र में जो कार्य हो रहा है, वह निश्चित रूप से किसी युद्ध, हिंसा, घृणा और राजनीति से महत्वपूर्ण कार्य है। शब्द समूचे संसार का आधार है और वह समाज को नई शक्ति देता है। साहित्य इसलिए निर्विकल्प है क्योंकि हमारे लिए भाषा का कोई विकल्प नही और हमारी जिज्ञासाओं, चिंताओं, आशाओं, आशंकाओं और संभावनाओं का भी कोई विकल्प नहीं हैं। ये तमाम चीजें हमारे मनुष्य होने के अहसास को और गहरा करती हैं। साहित्य की एक लंबी परंपरा मौजूद होने के कारण आधुनिक साहित्यकार होना एक बड़ी चुनौती है क्योंकि जो लिखा गया है उससे अलग होना और एकदम नया कर पाना मुश्किल है। जब तक संसार में अच्छी चीजों की संभावनाएं हैं, तब तक साहित्य की प्रासंगिकता बनी रहेगी। ’’
समारोह के प्रधान वक्ता साहित्यकार गिरिराज किराड़ू इस मौके पर हेमंत शेष की पुरस्कृत पुस्तक पर टिप्पणी करते हुए बोले, ‘‘ एक दुनिया है जो हमारे बीच से गायब हो रही है। हेमंत शेष की कविता ऎसी चीजों की लंबी सूची बनाती है जो हमारे बीच से गायब होकर ‘था, थे, थी’ बनती जा रही हैं। हेमंत की कविता इस दुष्प्रचार का खंडन करती है कि आधुनिक कविता संवेदना और जीवन से कहीं दूर भटक रही है। ’’
विशिष्ट अतिथि प्रसिद्ध आलोचक डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल ने कार्यक्रम की सराहना करते हुए कहा, ‘‘आयोजन की सफलता इस चिंता का खंडन करती है कि साहित्य की प्रासंगिकता खत्म हो गई है। आजादी के बाद एक बड़ी दुर्घटना हमारे साथ यह घटी कि हम प्रत्येक कार्य के लिए सरकार के मुखापेक्षी हो गए हैं लेकिन डॉ घासीराम वर्मा जैसे लोग इस बात को झुठलाते हैं। ’’
बीकानेर के साहित्यकार मालचंद तिवाड़ी ने हेमंत शेष की कविता की असली ताकत उनकी भाषा को बताया। वे बोले, ‘‘हेमंत विषयों, प्रतीति और अनुभूति के हिसाब से वे उच्च स्तर के कवि हैं। ’’ उन्होंने अज्ञेय केा उद्धृत करते हुए कहा, ‘‘किसी भी अच्छी रचना को पढने के बाद आप वही नहीं रह जाते जो आप उस रचना को पढने से पहले थे। ’’
करोड़पति फकीर की संज्ञा से विभूषित प्रसिद्ध शिक्षाविद डॉ घासीराम वर्मा ने साहित्य और पुस्तकों को समाज की महत्ती जरूरत बताया। उन्होंने कहा, ‘‘हमारे विद्यालयो के पुस्तकालयों में बंद किताबें विद्यार्थियों तक पहुंचे, ऎसे प्रयास शिक्षकों को करने चाहिए।’’
समारोह में भंवर सिंह सामौर, सुरेंद्र पारीक ‘रोहित’, दुलाराम सहारण, रामनाथ कस्वां, उम्मेद गोठवाल, हरिसिंह सिरसला, हनुमान कोठारी, सोहनसिंह दुलार, शेरिंसह बीदावत, बाल भवन जयपुर की निदेशक श्रीमती चरणजीत ढिल्लो, नगरश्री के श्याम सुंदर शर्मा, रामगोपाल बहड़, पूर्व विधायक रावतराम आर्य, पत्रकार माधव शर्मा, मदन लाल सिंगोदिया, शोभाराम बणीरोत, कमल शर्मा प्रदीप शर्मा, शिव कुमार शर्मा, संतोष कुमार पंछी सहित बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमी श्रोता उपस्थित थे।
डॉ घोटड़ की पुस्तक का विमोचन
समारोह के दौरान साहित्यकार डॉ रामकुमार घोटड़ की पुस्तक ‘मेरी श्रेष्ठ लघुकथाएं’ का विमोचन मुख्य अतिथि नासिरा शर्मा ने किया। इस पुस्तक में डॉ घोटड़ के 25 वर्ष के साहित्यिक जीवन के दौरान लिखी गई लघुकथाओं में से स्वयं उनके नजरिए से बेहतरीन 58 लघुकथाएं संकलित की गई हैं। पुस्तक के प्रथम खंड में विभिन्न संग्रहों व पत्रिकाओं में प्रकाशित 25 तथा दूसरे खंड में 33 नवीन लघुकथाएं शामिल की गई हैं। समारोह में प्रयास संस्थान की समारोह केंद्रित स्मारिका का विमोचन अतिथियों ने किया।
बोधि पुस्तक पर्व एवं मायामृग
समारोह में बोधि पुस्तक पर्व प्रकाशन के लिए बोधि प्रकाशन जयपुर के मायामृग को सम्मानित किया गया। वक्ताओं ने उनकी इस पहल को पुस्तक जगत की नैनो क्रांति की संज्ञा देते हुए उनकी खुले दिल से सराहना की। सम्मानित प्रकाशक मायामृग ने कहा, ‘‘साहित्य प्रकाशन के क्षेत्र में जिस तरह विसंगतियां और विद्रूपताएं पैदा हो गई है, वैसे में थोड़ी जोर से आवाज जरूरी थी। पाठकों को वाजिब मूल्य पर किताब मिलनी ही चाहिए। हिंदी में असंख्य पाठक मौजूद है। कहीं न कहीं कमी हमारी है कि हम उन तक नहीं पहुंच पा रहे हैं।
प्रयास की ओर से पुस्तकें भेंट -
सम्मानित कवि हेमंत शेष ने पुरस्कार राशि पांच हजार एक सौ रुपए की राशि प्रयास संस्थान को साहित्यिक कार्य के लिए प्रदान की। प्रयास संस्थान की ओर से इतनी ही राशि और मिलाकर जिले के 51 पुस्तकालयों को पुस्तकों के सैट भेंट करने का निर्णय लिया गया। समारोह के दौरान प्रतीक स्वरूप विभिन्न पुस्तकालयों व विद्यालयों के प्रतिनिधियों को पुस्तकें भेंट की गईं।
रूबरू हुए बीकानेर के साहित्यकार मालचंद तिवाड़ी
रविवार को पंडित कुंज बिहारी शर्मा स्मृति गोष्ठीमाला की 40 वीं कड़ी में बीकानेर के श्री मालचंद तिवाड़ी शहर के साहित्यप्रेमियों से रूबरू हुए।
राजस्थानी व हिंदी के वरिष्ठ कवि और कथाकार मालचंद तिवाड़ी ने अपनी रचनाओं से सुधी साहित्यप्रेमियों व श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया।
वरिष्ठ कवि श्री प्रदीप शर्मा की गोष्ठी की शुरुआत में श्री मालचंद तिवाड़ी ने अपने साहित्यिक जीवन और दृष्टिकोण को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले शरतचंद्र के उपन्यास ‘चरित्रहीन’ और उसकी मुख्य पात्र किरणमयी पर केंद्रित अपने चिंतनपरक आलेख से की। मानवीय संवेदनाओं और सामाजिक विद्रूपताओं का चित्रण करती लघुकथाएं ‘खबर’ और ‘रूमाल’ साहित्यप्रेमियों ने खासी पसंद की। काव्यपाठ की शुरुआत तिवाड़ी ने अपनी राजस्थानी कविता ‘सवार’ से की तो उनके अनुभूति और अभिव्यक्ति के स्तर को देखकर साहित्यप्रेमी चकित रह गए। मां की ममता और स्नेहिल स्पर्श की खुशबू से लबरेज ‘मां रै सिराणै’ शृंखला की पांच कविताओं को सुनकर श्रोताओं की आंखें नम हुए बिना नहीं रह सकीं। ‘कूं-कूं रा छांटा’ और ‘अणसुणी बाळसाद’ जैसी कविताओं ने भी भाव-विभोर कर दिया। विश्वविख्यात पंजाबी कवि सुरजीत पातर की मालचंद तिवाड़ी द्वारा अनुदित कविताओं ‘साज कैवे तलवार नैं’ और ‘इतिहास’ ने सुधी श्रोताओं के हृदय को भीतर तक झकझोर दिया।
इस मौके पर अपने आत्मकथ्य में साहित्यकार मालचंद तिवाड़ी ने कहा, ‘‘ अभ्यास और साहित्यिक सत्संग से लेखन में निखार अवश्य आता है लेकिन वे प्रतिभा के स्थानापन्न नहीं हो सकते। लेखक होना एक तरह की आत्मविष्कृति है और मनुष्य की एक निर्विकल्प परिस्थिति है। स्थिति कुछ-कुछ ऎसी है कि मैं तो कंबल को छोड़ दूं पर यह कंबल मुझे नहीं छोड़ता। साहित्य क्षेत्र की उठापटक और राजनीति से कई बार वितृष्णा होती है लेकिन विवशता यह है कि मैं इसे छोड़ नहीं पाता। ’’
गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि प्रदीप शर्मा ने कहा, ‘‘ जब हृद्य भरा होता है तो शब्द कम होते हैं और तिवाड़ी की रचनाएं हृद्य को छूने वाली हैं। विभिन्न घटनाओं, संबंधों और चीजों के प्रति उनकी अंतर्दृष्टि और सूक्ष्म विवेचन क्षमता प्रभावित करती है।’’
साहित्यकार दुलाराम सहारण ने कहा कि तिवाड़ी की कहानियां और कविताएं प्रत्येक आम और खास के भीतर तक पहुंचते हुए अपना असर छोड़ती हैं।
मोहन सिंह मानव, सुरेंद्र पारीक रोहित, कमल शर्मा, रामसिंह बीका ने भी तिवाड़ी की कविताओं पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि वे मानवीय संवेदना के कवि हैं।
इस मौके पर शॉल ओढाकर मालचंद तिवाड़ी का सम्मान किया गया। कार्यक्रम में रामसिंह बीका, देवकिशन सैनी, रामनिवास सर्राफ, डॉ शेरसिंह बीदावत, रामनाथ कस्वां, रामावतार साथी, दुलाराम सहारण, कमल शर्मा सहित बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमी मौजूद थे।
संबंधों की ऊष्मा के चितेरे श्री मालचंद जी तिवाड़ी-
मानवीय संवेदनाओं और संबंधों की ऊष्मा का अपनी रचनाओं में प्रभावी चित्रण करने वाले मालचंद तिवाड़ी का जन्म 19 मार्च 1958 को बीकानेर में हुआ। इनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें हिंदी कहानी संग्रह ‘पानीदार तथा अन्य कहानियां’, ‘सुकांत के सपनों में’, ‘जालिया और झरोखे’, ‘त्राण तथा अन्य कहानियां’, उपन्यास ‘पर्यायवाची’, एच जी वेल्स की महान विज्ञान कथा ‘टाइम मशीन’ हिंदी अनुवाद, राजस्थानी में उपन्यास ‘भोळावण’, कविता संग्रह ‘उर्तयो है आभो’, कहानी संग्रह ‘सेलिब्रेशन’ मुख्य हैं। इन्हें राष्ट्रीय स्तर का साहित्य अकादेमी पुरस्कार, राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादेमी का सर्वोच्च सूर्यमल्ल मिश्रण पुरस्कार, लखोटिया पुरस्कार, गणेशीलाल व्यास पुरस्कार सहित विभिन्न पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। पांच साल तक केंद्रीय अकादेमी की राजस्थानी परामर्श समिति में संयोजक रह चुके तिवाड़ी वर्तमान में अकादेमी की ‘राइटर एट रेजीडेंस’ योजना के अंतर्गत लेखन कार्य कर रहे हैं।
--------------
nice
ReplyDeletevistrit sahityk report ke liye ,
ReplyDeletesadhuwad
saadar !