Friday, December 16, 2016

चुनौती

तुम्हारी आंखें चमक रही थीं
होठों पर तैर रही थी मुस्कराहट
तुम्हारी देह में एक तेवर था
और गर्मजोशी से भरा था
एक-एक शब्द.
इतने भरोसेमंद स्वर में
तुमने कहा था
आने वाले हैं अच्छे दिन
कि शादी का झांसा देकर
रोज हो रहे बलात्कार,
आभूषण चमकाने के नाम पर
हो रही सोने की ठगी,
एक महीने में रकम
दुगुनी करने के वायदों
और असाध्य बीमारियों के
गारंटेड इलाज के दावों की
खबरों और विज्ञापनों
के बीच
हजारों साल से
ठगे जा रहे मुझ अबोध के पास
नहीं था कोई कारण
यकीन नहीं करने का.
तभी तो
तुमने जब दिया मेरी उम्मीदों को
अपना लच्छेदार स्वर,
भीड़ में बैठा मैं भी
दोहरा रहा था
अच्छे दिनों को लेकर
अपनी दबी हुई ख्वाहिशें
तुम्हारी मुस्कराहटों में छिपे छल
तुम्हारी आंखों में दबी धूर्तता
तुम्हारे आश्वासनों में छिपे जुमलों
तुम्हारी गर्मजोशियों में छिपी मंशाओं
और तुम्हारे तेवर में लिपटे
खंजरों से बेखबर.

तो भी सुनो!
सर्वकालिक तौर पर
सबसे अधिक
छला गया समय मैं
तुम्हें कह रहा हूं
तुम जैसे हजारों जुमलेबाज
मिलकर भी
नहीं नष्ट कर सकते
अच्छे दिनों की मेरी आशाओं को
सुनो, उस बार तुमने कहा था
इस बार मैं कह रहा हूं
अच्छे दिन आने वाले हैं
रोक लेना तुम,
रोक सको यदि।

-कुमार अजय
(5 अक्टूबर 2016)

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