इतना भी खामोश ना रह...
इतना भी खामोश ना रह
उसकी सुन, अपनी भी कह।
कभी-कभी धारा को मोड़
और कभी धारा में बह।
दुनिया के ताने सुनता है
उसकी भी दो बातें सह।
उसकी हस्ती क्या जानूं
तह के नीचे कितनी तह।
अहम के सूरज को थाम
वरना तुम्हें रोकेगा वह।
—कुमार अजय
इतना भी खामोश ना रह
उसकी सुन, अपनी भी कह।
कभी-कभी धारा को मोड़
और कभी धारा में बह।
दुनिया के ताने सुनता है
उसकी भी दो बातें सह।
उसकी हस्ती क्या जानूं
तह के नीचे कितनी तह।
अहम के सूरज को थाम
वरना तुम्हें रोकेगा वह।
—कुमार अजय
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