Sunday, September 6, 2009

हजारों वर्षों का इतिहास समेटे है घांघू

चूरू से मलसीसर और टमकोर जाने वाली निजी बसों से घांघू बस स्टॉप पर उतर कर शायद ही किसी को यह महसूस हो कि महज ६००-७०० घरों की आबादी वाला यह गांव जिला मुख्यालय चूरू और जयपुर जैसे महानगर से भी पहले का सैकड़ों वर्षों का इतिहास अपने भीतर समेटे हुए है। गांव के संस्थापक राजा घंघरान की बेटी लोकदेवी जीण और पुत्रा हर्ष के अद्भुत स्नेह की कहानी भारतीय फिल्म नगरी बॉलीवुड के फिल्मकारों को भी आकर्षित कर चुकी है।

इतिहासकारों की नजर से

एक हजार से भी अधिक साल पुराने इस गांव के सुनहरे अतीत पर यूं तो अनेक इतिहासकारों ने अपनी कलम चलाई है लेकिन इनमें कर्नल टॉड, बांकीदास, ठाकुर हरनामसिंह, नैणसी, डॉ दशरथ शर्मा, गोविंद अग्रवाल के नाम खासतौर पर शामिल है। क्याम खां रासो के मुताबिक, चाहुवान के चारों पुत्रों मुनि, अरिमुनि, जैपाल और मानिक में से मानिक के कुल में सुप्रसिद्ध चौहान सम्राट पृथ्वीराज पैदा हुआ जबकि मुनि के वंश में भोपालराय, कलहलंग के बाद घंघरान पैदा हुआ जिसने बाद में घांघू की स्थापना की। गोविंद अग्रवाल कृत चूरू मंडल का शोधपूर्ण इतिहास के मुताबिक, एक बार राजा घंघरान शिकार खेलने गया। राजा मृग का पीछा करते हुए लौहगिरि( वर्तमान लोहार्गल) तक जा पहुंचा जहां मृग अदृश्य हो गया। राजा वृक्ष के नीचे विश्राम करने लगा। निकट ही एक सरोवर था जिसमे स्नान करने के लिए चार सुंदरियां आईं। वस्त्रा उतारकर उन्होंने सरोवर में प्रवेश किया। राजा ने उनके वस्त्रा उठा लिये और इसी शर्त पर लौटाए कि उन चारों में से किसी एक को राजा के साथ विवाह करना होगा। मजबूरन, सबसे छोटी ने विवाह की स्वीकृति दे दी। तब राजा ने उसके साथ विवाह किया।

जीण की जन्मभूमि

राजा को अपनी पहली रानी से दो पुत्र हर्ष व हरकरण तथा एक पुत्राी जीण प्राप्त हुई। ज्येष्ठ पुत्रा होने के नाते हालांकि हर्ष ही राज्य का उत्तराधिकारी था लेकिन नई रानी के रूप में आसक्त राजा ने उससे उत्पन्न पुत्रा कन्ह को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। संभवत: इन्हीं उपेक्षाओं ने हर्ष और जीण के मन में वैराग्य को जन्म दिया। दोनों ने घर से निकलकर सीकर के निकट तपस्या की और आज दोनों लोकदेव रूप में जन-जन में पूज्य हैं।

गोगाजी व कायमखां

इसी प्रकार लोकदेव गोगाजी और क्यामखानी समाज के संस्थापक कायम खां भी घांघू से संबंधित हैं। घंघरान के ही वंश में आगे चलकर अमरा के पुत्रा जेवर के घर लोकदेवता गोगाजी का जन्म जेवर की तत्कालीन राजधानी ददरेवा में हुआ। बाद में गोगाजी ददरेवा के राजा बने। गोगाजी ने विदेशी आक्रांता महमूद गजनवी के खिलाफ लड़ते हुए अपने पुत्रों , संबंधियों और सैनिकों सहित वीर गति प्राप्त की। इसी वंश के राजा मोटेराव के समय ददरेवा पर फिरोज तुगलक का आक्रमण हुआ और उसने मोटेराय के चार पुत्रों में से तीन को जबरन मुसलमान बना लिया। मोटेराय के सबसे बड़े बेटे के नाम करमचंद था जिसका धर्म परिवर्तन पर कायम खां रखा गया और कायम खां के वंशज कायमखानी कहलाए।

ऐतिहासिक गढ़ और छतरी

हालांकि हजारों वर्षों पूर्व के सुनहरे अतीत के चिन्ह तो घांघू में कहीं मौजूद नजर नहीं आते लेकिन लगभग ३५० साल पहले बना ऐतिहासिक गढ और सुंदर दास जी की छतरी आज भी गांव में मौजूद है। गांव में जीणमाता, हनुमानजी, करणीमाता, कामाख्या देवी, गोगाजी, शीतला माता सहित ७-८ देवी देवताओं के मंदिर हैं।

वर्तमान में घांघू

एक धर्मशाला तथा जलदाय विभाग के पाँच कुंए हैं जिनसे घर-घर जलापूर्ति होती है। पिछले वर्षों में जलस्तर काफी गिरा है और पानी की सबसे बड़ी समस्या इसका खारापन है। स्थानीय राजकीय संस्थानों में एक वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, एक बालिका माध्यमिक विद्यालय, एक उच्च प्राथमिक विद्यालय, आंगनबाड़ी केंद्र, पशु चिकित्सा केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, दूरभाष केन्द्र , डाकघर, दो बैंक, ३३ के वी विद्युत ग्रिड सब स्टेशन हैं। तीन निजी स्कूलें भी हैं। ग्राम पंचायत घांघू के अंतर्गत घांघू, बास जैसे का, दांदू व बास जसवंतपुरा आते हैं। वर्ष २००१ की जनगणना के मुताबिक ग्राम की जनसंख्या ३ हजार ६५४ है। श्रीमती नाथीदेवी गांव की सरपंच हैं। निजी बसें एवं साधन पर्याप्त हैं लेकिन लोगों को राज्य पथ परिवहन निगम की बसें नहीं चलने का मलाल है।

प्रतिष्ठित व्यक्ति
ग्राम के सर्वाधिक प्रतिष्ठित व्यक्तियों में गंगानगर के पूर्व विधायक सुरेंद्र सिंह राठौड़, बंशीधर शर्मा, डीजी जेल पश्चिमी बंगाल, मो. हनीफ, डॉ मुमताज अली, एथलीट बैंकर्स हरफूलसिंह राहड़, पवन अग्रवाल आदि हैं। राजनीतिक रूप से श्री महावीर सिंह नेहरा, ग्राम सेवा सहकारी समिति अध्यक्ष श्री परमेश्वर लाल दर्जी, लिखमाराम मेघवाल, जयप्रकाश शर्मा, चंद्राराम गुरी आदि सक्रिय हैं। बंशीधर शर्मा द्वारा पश्चिमी बंगाल में किए गए जेल सुधारों को विश्वस्तर पर सराहना मिली है। यहां के लक्खूसिंह राठौड़ श्रीलंका भेजी गई शांति सेना में शहीद होकर नाम अमर कर चुके हैं।
सांप्रदायिक सद्भाव

ग्राम की हिंदु मुस्लिम आबादी में अधिक अंतर नहीं फिर भी यहां लोगों के सांप्रदायिक सद्भाव की जितनी प्रशंसा की जाए, कम है। गांव में ६०-७० दुकानें हैं, जिनसे रोजमर्रा के सामान की पूर्ति हो जाती है। ग्राम में शिक्षा का स्तर काफी बढ़ा है और लोग इस बात के लिए सचेष्ट होने लगे हैं कि उनके बच्चों को पढने के लिए अच्छा वातावरण और विद्यालय मिले। गत वर्षों में अकाल ने लोगों की कमर तोड़ी है लेकिन ग्रामीण सुखद भविष्य के लिए आशान्वित नजर आते हैं। गांव कई रूटों से सड़क से जुड़ा हुआ है लेकिन ग्रामीणों का मानना है कि यदि दक्षिण में बिसाऊ तक सड़क और बन जाए तो लोगों को खासी सुविधाएं मिल जाएं।

बेहतर भविष्य की आशाएं

ग्राम की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर बनी जय जीण माता फिल्म और धारावाहिक के निर्माण ने गांव को नई पहचान दी है। बहरहाल, कुछेक छुटपुट चीजों को दरकिनार कर दिया जाए तो गांव काफी अच्छी स्थिति में है। गांव का इतिहास और विकास दोनों ही इसकी पहचान हैं और वर्तमान स्थिति को देखते हुए भविष्य भी उज्जवल नजर आता है।

पुरातात्विक महत्व
दसवीं शताब्दी में बसा गांव घांघू ऐतिहासिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। इसी काल के हर्ष, रैवासा और जीणमाता अपने पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्व के लिए खासे प्रसिद्ध हैं। हर्षनाथ से मिली पुरातात्विक सामग्री इतिहासवेत्ताओं के लिए खासी महत्वपूर्ण है। हर्ष और जीणमाता गांव से तो घांघू एकदम सीधे-सीधे संबंधित है। इसलिए यहां भी अगर पुरातत्वविदों की नजर पड़े और खुदाई की जाए तो संभव है कि कम से कम दसवीं शताब्दी के इतिहास से जुड़े काफी चीजें यहां मिल सकती हैं। इसी दृष्टि से हुई उपेक्षा के चलते गांव का समूचा गौरव मानो दफन होकर रह गया है। ग्रामीणों का मानना है कि सरकार को अपनी हैरिटेज योजनाओं में घांघू गांव को शामिल करना चाहिए तथा अगर यहां पुरातात्विक दृष्टिकोण से खुदाई हो जाए तो निश्चित रूप से दसवीं शताब्दी और संभवत: उससे भी पुराने इतिहास में कुछ नए पन्ने जुड़ सकते हैं।

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