Sunday, December 20, 2009

कुमार अजय की एक ग़ज़ल


उसने मुझ पर उछाले पत्थर
मैंने बुनियाद में डाले पत्थर।

तेरी राह में हर मील पे गड़ा हूं
तेरी औकात है तो हिला ले पत्थर।

मेरी तो आदत है सच कहूंगा ही
तू हाथों में लाख उठा ले पत्थर।

हर पत्थर सजदे में झुका है
उसने कुछ ऐसे हैं ढाले पत्थर।

बुरे दौर में रोटी की बात न कर
तलब है तो पी ले पत्थर, खा ले पत्थर।


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2 comments:

  1. हर पत्थर सजदे में झुका है
    उसने कुछ ऐसे हैं ढाले पत्थर।

    बुरे दौर में रोटी की बात न कर
    तलब है तो पी ले पत्थर, खा ले पत्थर।
    Bahut khoobasuratee ke sath kam shabdon men likhee gayee rachana----

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  2. Behad khoobasurat gajal---isaka hara sher lajavab hai.hardik shubhakamnayen.

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