Thursday, April 8, 2010

कोई स्त्री ही होगी वह...

दिनभर तुम्हारे लिए चिंतातुर
तुम्हारी मा हो सकती है वह
और तुम्हारी मुसीबतों के सामने
दीवार बनकर खड़ी बड़ी बहिन भी।

यह भी संभव है कि वह हो
अपने झुर्रियों भरे हाथों को
तुम्हारे सुखों के लिए
फैलाए खड़ी बूढ़ी दादी मा,
स्नेहिल हाथों से घी-चूरमा परोसती
और अपनी कहानियों के जरिये
अपने अनुभव के हाथ तुम्हारे सिर रखती
तुम्हारी नानी,
तुम्हारे हर दर्द-तकलीफ में
कंधा मिलाकर खड़ी पत्नी,
तुम्हारे साथ सुनहरी जिंदगी के
सपने बुनती प्रेमिका
या तुम्हारे घर-आंगन में
किलकारियां भरती नन्हीं-नटखट बिटिया ।

हां, तुम्हारी स्लेट-पेंसिल थामे
ककहरा सिखाती
तुम्हारी स्कूल टीचर भी हो सकती है वह।

भले ही कोई भी हो वह
ये मेरा दावा है
कि जिसने सबसे ज्यादा प्यार
और सबसे ज्यादा खुशियां दी हैं तुम्हें,
तुम पर निछावर किए हैं
अपने सुख-अपना जीवन
यकीनन कोई स्त्री ही होगी वह.

जरा सोचो
स्त्री होने की एवज में
उसे तुम्हारी इस दुनिया में
दाखिल होने से ही
रोक दिया गया होता तो...
-----------

1 comment:

  1. बेहतरीन प्रस्‍तुति........

    काश ऐसा हर-एक सोचता !!

    श्रेष्‍ठ विचार-प्रवाह के लिए बधाई।

    ReplyDelete