Tuesday, March 23, 2010

बचपन को समर्पित तीन लघु कविताएं

(एक)

स्मृति-शेष

बचपन की
स्मृतियों में ही शायद
अपने भीतर
ढेर सारा बचपना
संजोये हुए हैं लोग ।


(दो)

दोहराव

बचपन के
दिनों को
याद करते हुए
आज मैंने सोचा
कि खुद को
दोहराने वाला
इतिहास आखिर
हमें क्यों नहीं दोहराता ?


(तीन)

भरपाई

बचपन
नहीं आयेगा
लौटकर
इस दुःख को
कम करने के लिए
क्या पर्याप्त नहीं है
यह सुख
कि हम भी
कभी बच्चे थे...।

-कुमार अजय

4 comments:

  1. Nice!
    "ji karta hai mera fir se bachcha ban jaane ko !...."

    kindly see, this poem on my blog "ardhgaan"

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  2. इस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  3. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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