Wednesday, May 19, 2010

कामयाबी का एवरेस्ट फतह करने वाले के लिए कौनसा लक्ष्य मुश्किल है ?

आज से ठीक एक साल पहले 20 मई 2009 बुधवार को सवेरे 6 बजकर 15 मिनट पर चूरू के गौरव शर्मा ने एवरेस्ट फतह कर एक इतिहास रचा था। विपरीत परिस्थितियों से लगातार लोहा लेते हुए खुद को बनाने वाले गौरव की यह सफलता उस संकल्प की जीत थी, जो उन्होंने तमाम मुश्किलों और बाधाओं के खिलाफ किया था। इस एक साल में गौरव को बड़ी संख्या में समारोहों में सम्मानित किया गया है।
चूरू जैसे शहर में जब गौरव ने आज से करीब एक दशक पहले पर्वतारोहण की गतिविधियों में भाग लेना शुरू करते हुए कहीं एवरेस्ट आरोहण जैसी बात भी की होगी, तो हम कल्पना कर सकते हैं, कि इसे एक मजाक से ज्यादा कुछ और नहीं समझा गया होगा। जिस दिन पहली बार बालक गौरव ने यह सपना देखा होगा, उस दिन किसी और ने शायद ही यह कल्पना की होगी कि यह जिद्दी बालक एक दिन तमाम युवाओं के लिए एक आदर्श बनकर उभरेगा।
अपनी एवरेस्ट विजय की पहली वर्षगांठ पर गौरव ने यह संकल्प किया है कि वे आने वाले समय में विश्व के शेष छह महाद्वीपों के सर्वोच्च पर्वत शिखरों पर अपनी विजय पताका फहराएंगे। एशिया के सबसे ऊंचे शिखर एवरेस्ट पर, जो कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी है, वे जा चुके हैं और शेष तमाम महाद्वीपों की शीर्ष चोटियों को वे आने वाले दिनों में अपने कदमों में लाकर रखना चाहते हैं। ये चोटियां हैं - अफ्रीका में माउंट किलिमंजारो, उत्तरी अमेरिका में माउंट मैकेन्ली, यूरोप में माउण्ट एलब्रस, अन्टार्कटिका में माउण्ट विन्सन मेसिफ, दक्षिण अमेरिका में माउण्ट एकॉनकाहुआ और ओसियाना में माउण्ट कार्सटेन्ज। निश्चित रूप से गौरव का यह संकल्प उनके भीतर के लोहे को अभिव्यक्त करने वाला है। कामयाबी का एवरेस्ट छूकर भी गौरव की जिजीविषा उन्हें चैन से बैठने नहीं दे रही।
बहरहाल, कहा जा सकता है कि जिसने एवरेस्ट पर विजय पा ली है, उसके लिए कौनसा लक्ष्य मुश्किल है। बहरहाल, गौरव के हौंसले को सलाम और उनके नए संकल्प की सफलता के लिए उन्हें ढेर सारी शुभकामनाएं... दिल से।

1 comment:

  1. gaurav ''SIR'' is the best climber in Indian history

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