Friday, May 28, 2010

अमिताभ, जया और अमर सिंह...

अमिताभ बच्चन ने अक्सर पर अपने सुलझे हुए इंसान होने का सबूत दिया है। विवादों से घिरते-घिरते कैसे वे एकदम से अपने आपको बचा ले जाते हैं, यह कई बार देखने को मिला है। सोनिया-राहुल और जया-अभिषेक के बीच हुए वाकयुद्ध के समय ‘वे राजा हैं और हम रंक है’ जैसी गंभीर, संजीदा और भावपूर्ण प्रतिक्रिया देकर उन्होंने खासा प्रभावित किया था।
अपने पिता के समय से ही उनके रिश्ते नेहरू परिवार से काफी नजदीकी रहे हैं। बीच में जब राजीव गांधी नहीं रहे और सोनिया गांधी राजनीति में सक्रिय नहीं हुई थीं, उन दिनों अमिताभ भी अपने जीवन बुरे दौर से गुजर रहे थे। उन्होंने अभिनय छोड़कर एबीसीएल का गठन किया था और फिल्म निर्माण जैसे काम शुरू किये थे। अपनी इस पारी में उन्हें एकदम असफलता हाथ लगी और वे करोड़ों के कर्ज में डूब गए। सोनिया ने उस बुरे दौर में अमिताभ की कोई सुध नहीं ली। रिश्ते बनाने में माहिर अमर सिंह उस समय अमिताभ के करीब आए और हरसंभव मदद भी की। अमिताभ ने भी हार नहीं मानी और अभिनय की दुनिया में फिर लौट आए। कौन बनेगा करोड़पति के साथ ही उनकी लोकप्रियता फिर लौट आई और वे फिर चल पड़े। इधर, जया-अभिषेक ने भी अभिनय कर पैसा कमाया और इस तरह परिवार की मेहनत और एकजुटता से बुरे दिन गुजर गए।
अमर सिंह उस दौर के अमिताभ के साथी रहे हैं। ऎसे में जब अमर सिंह बुरे दौर से गुजर रहे हैं, तो निश्चित रूप से अमिताभ को उनका साथ देना ही चाहिए था। लेकिन जब जया ने अमर सिंह के साथ पार्टी नहीं छोड़ी तो निसंदेह अमर सिंह को काफी तकलीफ हुई और उन्होंने इसे मौके-बेमौके जाहिर भी किया। जब जया को फिर से समाजवादी पार्टी का टिकट मिला तो अमर िंसह ने खासी तल्ख प्रतिक्रिया दी थी। जया बच्चन ने राज्यसभा टिकट लौटाकर अपने परिवार की चिर-परिचित संजीदगी का परिचय दिया है। हालांकि यह नहीं माना जा सकता है कि केवल टिकट लौटाने मात्र से ही बच्चन परिवार और अमर सिंह के रिश्तों में पड़ी दरार पट जाएगी लेकिन जया बच्चन ने एक बार फिर यह तो साबित कर ही दिया है कि वे इतनी सत्तालोलुप नहीं हैं कि कोई भी आरोप स्वीकार कर स्वार्थों से चिपकी रहे।

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