Tuesday, July 27, 2010

स्मृति अर सपनै री कविता

आप रै आखती-पाखती री घटनावां-चीजां अर आप री निजू अबखायां सूं कविता रो सामान कबाड़ण रै जतन में जुट्या जोध-जुवान उठतोड़ा कवि मदन गोपाल लढा रो पैलो कविता संग्रै म्हारै पांती री चिंतावाकवि मन रै ओळे-दोळे समूळी पीढी री िंचंतावां नै व्यक्त करै। नुंवै दौर रै बदळावां अर आप री मजर्बूयां रै बीचाळै खुद नैं असहज अर अर कदे-कदे असहाय मैसूस करतो कवि बड़ी ही सहजता रै साथै आप रै मन री बात कैंवतो लखावै। जुगु बदळावां नै लेयर कवि रै मांय वेदना रो जको गुब्बार है, अंतर्मन में जकी तकलीफ, लाचारी अर तड़प है, बीं सूं आपां सगळा ई कद किनारो नीं कर सकां हां। संग्रै री तमाम कवितावां में कठे ई कोई सबदजाळ नहीं, कठे ई कोई आडंबर-दिखावो नीं, अर न ई अपणै आप नै साबित करणै रो कोई जतन। बिलकुल साधारण सी दिखण आळी घटवानां अर सबदां नैं आप रै नजरियै सूं कवि इयां आपां रै सामीं राखै कै आपां भी वां सूं सहमत हुयां बिना नीं रैय सकां। कारण कै, वां अबखायां सूं आपां भी दिन-रात दो दो हाथ करां ई हां। अतीत रै झरोखै सूं झांकतो कवि वीं नै आहत करतै वर्तमान सूं जूझतो लखावै। बदळाव री लाय में दाझ्योड़ो कवि ईं जुग में अपणै आप नै अेकलो सो मैसूस करतो आप री यादां री पोटळी आपणै सामीं राखै। कवि री स्मृतियां रा अै बिंब जद आपणै सामीं खड्या हुवै तो मैसूस हुवै कै स्मृति री वै की वै समानांतर ईमारतां आपां रै मन रै किणी कूणै में ई मौजूद है।

हेत मदन री कविता रो मूल स्वर है। किणी कविता में सायास तो किणी में अनायास ई ओ हेत आप री मौजूदगी दर्ज करा जावै। मन री पाटी माथै मंड्योड़ा हेत रा हरफां नैं डोवणै में असमर्थ होयर आखर री आरसी में हेताळू रो उणियारो ओळखतै कवि नै हेत रै ओळावै सूं सगळी दुनियां ई चोखी लागै। जूण जातरा में प्रेम री ईं सूं बेसी कुणसी भूमिका होय सकै है। प्रेम रै ई आदर्श स्वरूप रै कारण ई कवि आ कैवै- कोनी घणो आंतरो/ थारै हुवणै/ अर नीं हुवणै बीचाळै। कवि रो निजूं प्रेम ईं ऊंचाई तांई पूगणै सूं ई आखै मानखै सूं प्रेम में बदळग्यो है।

बाजार री ताकत आज सै सूं प्रभावी है, संवेदनशील कवि मन में ई री टीस हुवणी सुभाविक है। मदन री कविता में ई आस टीस साफ व्यक्त हुवै- भाड़ै मिल जावै/ कूख तकात (कोनी चालै जोर) पण साथै ई बाजार री जद बतांवता थकां इणीज कविता में वै अेक भरोसो सो ई दिरावै। वै कैवे- पण मेह, मौत अर सपना ई/अलघा है/ बाजार री जद सूं।

कवि चाये कोई भी हुवै, बीं ने अतीत सूं खास लगाव रैवे। बदळाव री आंधी में संस्कारां री लुकमींचणी वीं रै बर्दाश्त री सींव सूं बारै हुवै। मदन री कविता में ई आ खासियत है कै वां नै आप रै अतीत सूं गैरो मोह है। आ मोहग्रस्तता कवि रै संवेदना पक्ष री ताकत तो है पण जद कवि आखरी कविता तांई इण मोह सूं बारै नीं निकळै जद अेक चिंता सी ई हुवै। अठै कवि री आ खासियत भरोसो दिरावै कै कवि आप री विगत सूं मोहग्रस्त तो है, पण शोकग्रस्त नीं है। आपबीती नैं याद करर कवि फगत पीड़ा में आणंद री अनुभूति ई करतो लखावै। आत्मुग्धता कविमन रो सुभाविक गुण है, जको केई कवितावां में झलकै पण साथै ई साथै कवि बीजै लोगां री अबखाया, पीड़ावां अर चिंतावां री ई बात करै। आं कवितावां मांय दिसावरी करणियां रै मन री पीड़ है तो माटी रै सबदां नै पगां सूं खूंध, बीं री गांठां तोड़ अर पसीनो रळा-र मटकी बणावंतै कुंभार रै औळावै सूं मिणत-मजूरी करणियै लोगां रो समर्पण ई है। बगत रै सागै होड़ मांय खुद री जिंदगी नै घूम-चक्करी बणनै सूं बचावण में जुट्यो कवि मानखै री पीड़ आप रै सबदां में ढाळणै री खिमता ई चावै। नीम री छिंया में दादोसा रो उणियारो जोंवतो कवि टाबर रै सपनांर बिरछ री डाळ्यां रै ओळावै सूं आप री पर्यावरणीय संवेदना नै ई सबद देवै।

राजस्थानी नै मानता री कवि री चाह व्यक्त हुयां बिन नीं रैय सकै जद वो कैवे- जिंयां गाय बिना खूंटो/ टीकै बिना लिलाड़/ अर मूरत बिना हुवै मिंदर/ठीक बिंया ई/ भासा बिना हुवै मिनख (म्हानै म्हारी भासा चाइजै)

कुल मिलार कैयो जा सकै कै ऊपर सूं सांत पण मांय सूं उद्वेलित अै कवितावां कवि री स्मृति अर सपनै री कवितावां है, जिण मांय पाठक नै आप री स्मृति अर सपनां अेकमेक हुंवता लखावै। कवि री संभावना अर खिमता रा दरसण करावंतै संग्रै सूं आस करी जा सकै है कै वो राजस्थानी रै हेताळुवां रै हिड़दे तांई पूगसी।


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