Tuesday, March 22, 2011

राजस्थानी काव्य संग्रह ‘संजीवणी’ का विमोचन

चूरू। साहित्य अकादेमी नई दिल्ली से प्रकाशित कुमार अजय के कविता संग्रह ‘संजीवणी का विमोचन पांच फरवरी 2011 चूरू के सूचना केंद्र में प्रयास संस्थान की ओर से आयोजित समारोह में वरिष्ठ साहित्यकार एवं साहित्य अकादेमी में राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल के संयोजक पद्मश्री डॉ चंद्रप्रकाश देवल ने किया।

इस मौके पर डॉ देवल ने कहा कि साहित्यकार का मन समाज की दशा और दिशा पर पसीजता है, झुलसता है और रोता है, तब किसी रचना की उत्पत्ति होती है। विसंगतियों और विद्रूपताओं को देखकर साहित्यकार चुप नहीं रह सकता है। वह किसी फायदे के लिए नहीं लिखता है, यही कारण है कि समाज में साहित्यकार को युगों-युगों तक याद किया जाता है। उन्होंने सुकरात और पाणिनी का उदाहरण देते नए रचनार्धमियों को हिदायत दी कि प्रत्येक परिस्थिति में सच, नीति और न्याय के पक्ष में खड़ा होना चाहिए। उन्होंने कहा कि राजस्थानी में किसी भी नई रचना और पोथी को देखकर उनका खून बढता है। उन्होंने कहा कि दुनिया के सर्वश्रेष्ठ भाषाविद् सुनीति कुमार चाटुज्र्या ने राजस्थानी को उत्कृष्ट भाषा माना था। राजस्थानी दुनिया की सर्वश्रेष्ठ भाषा है और हर दृष्टिकोण से पात्र होने के बाद भी राजनैतिक इच्छाशक्ति के अभाव में हम अपनी मायड़ भाषा की मान्यता के लिए तरस रहे हैं। उन्होंने कहा कि राजस्थानी की मान्यता हमारी अस्मिता का सवाल है और लोकतंत्र का तकाजा है। उन्होंने कहा कि आजादी की जंग में राजस्थान ने अगणित योद्धा दिए हैं। आजादी के बाद भी देश की हिफाजत के लिए शहीद होने वाले लोगों में सर्वाधिक संख्या राजस्थानियों की है, फिर भाषा की मान्यता के नाम पर हमें पीछे क्यों धकेला जाता है। उन्होेंने कहा कि राजस्थान के लोगों ने अपने आत्मोत्सर्ग से वीर रस को अभिव्यक्ति दी है, ऎसा उदारहण दुनिया की किसी दूसरी भाषा में नहीं मिलता। डॉ देवल ने बांकीदास द्वारा 1810 में लिखी गई ‘आयो अंगरेज मुलक रे ऊपर का उदाहरण देते हुए कहा कि सबसे पहले राजस्थानी साहित्य ने अंग्रेजों की गुलामी के विरूद्ध आजादी का बिगुल बजाया था। इससे पहले किसी भी भाषा के साहित्य में ऎसा दृष्टांत नहीं मिलता। उन्होंने कहा कि साहित्यकार को हमेशा यह आत्मविश्लेषण करना चाहिए कि वह क्यों लिखता है। यह दृष्टि उसके लेखन को समाज हित के लिए उपयोगी बनाए रखेगी।

डॉ मुमताज अली की अध्यक्षता में हुए कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रख्यात साहित्यकार त्रिभुवन ने कहा कि पाकिस्तान सहित दुनिया के कई देशों में राजस्थानी बोली जाती है और राजस्थानी का साहित्य बड़ा ही अद्भुत है। उन्होंने कहा कि राजस्थानी के शब्दों की अभिव्यक्ति क्षमता देखकर दुनिया भर के भाषाविद चकित रह जाते हैं। उन्होंने कहा कि राजस्थान के लोगों और राजनेताओं को राजस्थानी की मान्यता का संकल्प लेना होगा।

वशष्टि अतथि िअतरिक्ति कलक्टर बी एल मेहरड़ा ने उम्मीद जताई कि शीघ्र ही राजस्थानी को संविधान की आठवीं अनुसूची मे मान्यता मिल जाएगी। चूरू प्रधान रणजीत सातड़ा ने कहा कि राजस्थानी की मान्यता के लिए युवाओं को आगे आना चाहिए।

विमोचित पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत करते हुए युवा साहत्यिकार राजीव स्वामी ने कहा कि ‘संजीवणी एक रचनाकार के निजी संघर्षों और कड़वे-मीठे अनुभवों का सार्वजनिक बयान है। उन्होंने कहा कि अजय की प्रत्येक रचना कवि की उसके परिवेश के प्रति चौकन्नी नजर की परचिायक है। उन्होंने कवि की आत्मालोचनात्मक दृिष्ट की सराहना करते हुए कहा कि संग्रह की प्रेम कविताएं प्रेम के व्यापक स्वरूप को उद्घाटित करती हैं।

अतिथियों का स्वागत करते हुए प्रयास संस्थान के संरक्षक भंवर सिंह सामौर ने कहा कि कुमार अजय की पहली ही पुस्तक की रचनाओं में काफी परिपक्वता दिखाई दे रही है। बैजनाथ पंवार ने आभार जताया। प्रयास के अध्यक्ष दुलाराम सहारण ने अतिथियों का परिचय दिया।

इस मौके पर मुख्य अतिथि डॉ देवल को हाल में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री सम्मान की घोषणा के उपलक्ष्य में साफा बांधकर व शॉल, श्रीफल, प्रतीक चिन्ह व मान पत्र देकर सम्मानित किया गया। विभिन्न संस्थाओं की ओर से डॉ देवल का स्वागत किया गया। कार्यक्रम का संचालन कमल शर्मा ने किया।

इस दौरान सहायक जनसंपर्क निदेशक राजकुमार पारीक, सुरेंद्र पारीक रोहित पीआरओ रामप्रसाद शर्मा, रामगोपाल बहड़, दुलाराम सहारण, हरिसिंह सहारण, श्याम सुंदर शर्मा, माधव शर्मा, सुनीता दादरवाल, शबाना शेख, महावीर नेहरा, नारायण कुमार मेघवाल सहित बड़ी संख्या में बुद्धिजीवी, साहित्यकार, पत्रकार एवं नागरिक मौजूद थे।

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