Saturday, August 13, 2011

कहना ही है तो कहो.....

कहना ही है तो कहो.....

समय से कुछ मत कहो
मत कोसो समय को
इस बुरे समय से निजात
उसके बस की बात नहीं

कहना ही है अगर तुम्हें
तो कहो पंछियों से
कि वे लौट आएँ
सुबहों में अपने कलरव के साथ

गायों से कहो
कि साँझ होते ही
बछडों के लिए आतुर
रंभाती हुए घर लौटें
नदियों से कहो
फिर कोई राह बनाएँ
हो जाएँ
हरी-भरी पहले की तरह

पहाडों से कहो
पीछे सरकना छोडें और
आदमी के कुटिल इरादों के समक्ष
पहाड हो जाएँ

हवाओं से कहो
कि एयरकंडीशन कमरों से
निकलकर बाहर
खुले मैदानों में आएँ

झरनों से कहो
कि एक बार फिर
लौटे पर्वतों पर
पत्थरों को नहलाएँ

बच्चों से कहो
उतारे समझ का लबादा
मिलकर मचाएँ शोर
आसमाँ सिर पर उठाएँ
और कहो खुद से भी
किसी शाम तो दफ्तर से जल्दी घर लौटे
और नन्ही बिटिया से तुतलाकर बतियाएँ
हाँ, इन सब से कहो
लेकिन समय से कुछ मत कहो
क्योंकि इस बुरे समय से निजात
उसके बस की बात नहीं ।

No comments:

Post a Comment